|| पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम् || || Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam || नमो भूतनाथं नमो देवदेवं नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् । नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥ सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥ श्मशाने शयानं महास्थानवासं शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् । पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥ फणीनाग कण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । कटिं व्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥ शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं बृहद्दिव्यकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । फणी नागकर्णं सदा भालचन्द्रं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥ करे शूलधारं महाकष्टनाशं सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् । धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥ उदानं सुदासं सुकैलासवासं धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । अजा हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥ मुनीनां वरेण्यं ग
शिव महापुराण में वर्णित भगवान शिव का मदारी का अवतार, आज हम जानेंगे भगवान शंकर और राम जी से जुड़ी हुई एक पौराणिक कहानी के बारे में जो राम जी के बाल्यावस्था की है. जाने कैसे भगवान शिव मदारी के रूप में प्रकट हुए, और कैसे राम जी के दर्शन करने पहुंच गए, अयोध्या ।। कथा राम जी के जन्म समय की है, जब भगवान राम का जन्म हो गया था, एक दिन भगवान शिव की बालक रूप में राम जी को देखने की अभिलाषा व्यक्त हुई तो बाबा कैलाश पति उमा नाथ मदारी का भेष बनाकर, एक हाथ में बंदर, एक हाथ में डमरू बजाते हुए अयोध्या राजमहल की ओर चले गए. बाबा डमरू बजाते ओर बंदर करतब दिखाने लगता , जेसे ही राम जी ने मदारी के डमरू की आवाज सुनी तो दौड़े चले आए और बंदर के खेल को देख कर बहुत प्रसन्न हुए. राम जी को बंदर पसंद आ गया और मदारी से बंदर लेने की अभिलाषा व्यक्त की, मदारी के भेष मे शिव ने पहले तो अपना बंदर देने से मना कर दिया लेकिन राम जी के बार बार आग्रह करने पर मदारी मान गए और राम जी सेे एक हमेशा बंदर को हमेशा अपने पास ही रखेंगे लेकर, , शिव जी बंदर को राम जी को देकर कैलाश पर्वत की ओर चले गए. पौराणिक कथा