श्री दुर्गा सप्तशती प्रथम.. मेधा ऋषि का राजा सुर और समाधि कोगवती की महिमा भग मधु – कन्व- वध काथना । विनिगः॥ ॐ प्रथमचरित्रस्य ब्रह्म ऋषिः, महाकाली देवता, गायत्री छन्दः, नंद शक्तिः, रक्तदंतिका बीजम्, अग्निस्तत्वम्, ऋग्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहाकाली प्रीतिर्थे प्रथम पंचरजपे विनिगः। प्रथम वैशिष्ट्य के ब्रह्म ऋषि, महाकाली देवता, गौत्री छन्द, नंद शक्ति, रक्तदंतिका बीज, अग्नि तत्व और ऋग्वेद स्वरूप है। श्री महाकाली देवता की प्रसन्नता के गुणों के लिए जप में विनियोग होगा । ध्यानम्॥ ॐ खड्गं चक्रगदेशुचापपरिघनछिलं भुशुंदिंग शिरः शंखं संधतिं करैस्त्रिनयानं सर्वाङ्गभूषावृताम्। नीलश्मदुतिमास्यपाददशकं सेवे महां यामस्तौत्स्वपिते हरौकमलोजो हनतूं मधुं अच्छींभम्॥१॥ अस्तु विष्णु के सॉल्पर्व के यंत्र और धुरंधर धूल के कण्डवाल्कीय ब्रह्माजी नेन्स्ट स्टण्ण्ण्णीय यंत्र, अण् महाकाली व्यक्ति। वे अपने डोस्क में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनु, परिध, शूल, भुशुण्डी, मस्तक और शंख कोरिंग है। आंखों की आंखें हैं। वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके.. नमिष्कण्डिकायै "ॐ ऐं" मार्कण्डेय उवाच ...
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