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दिसंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

गणेश चालीसा पाठ || Ganesh chalisa ||

 ।। श्री गणेश चालीसा ।। जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल।। जय जय जय गणपति राजू।  मंगल भरण करण शुभ काजू।। जय गजबदन सदन सुखदाता।  विश्व विनायक बुद्धि विधाता।। वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।। राजित मणि मुक्तन उर माला।  स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।। पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।  मोदक भोग सुगन्धित फूलं।। सुन्दर पीताम्बर तन साजित।  चरण पादुका मुनि मन राजित।। धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।  गौरी ललन विश्व-विधाता।। ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे।  मूषक वाहन सोहत द्वारे।। कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।  अति शुचि पावन मंगल कारी।। एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी।। भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।। अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।  बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।। अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।  मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।। मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।  बिना गर्भ धारण यहि काला।। गणनायक गुण ज्ञान निधाना।  पूजित प्रथम रूप भगवाना।। अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै।  पलना पर बालक स्वरूप ह्वै।। बनि शिशु रुदन जबहि त

शिव विवाह की कथा || शिवपार्वती विवाह कथा ||

  शिवपार्वती विवाह कथा   सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।। तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई।। भावार्थ- सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया। सती के विरह में शंकरजी की दयनीय दशा हो गई। वे हर पल सती का ही ध्यान करते रहते और उन्हीं की चर्चा में व्यस्त रहते। उधर सती ने भी शरीर का त्याग करते समय संकल्प किया था कि मैं राजा हिमालय के यहाँ जन्म लेकर शंकरजी की अर्द्धांगिनी बनूँ। अब जगदम्बा का संकल्प व्यर्थ होने से तो रहा। वे उचित समय पर राजा हिमालय की पत्नी मेनका के गर्भ में प्रविष्ट होकर उनकी कोख में से प्रकट हुईं। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण वे 'पार्वती' कहलाईं। जब पार्वती बड़ी होकर सयानी हुईं तो उनके माता-पिता को अच्छा वर तलाश करने की चिंता सताने लगी। एक दिन अचानक देवर्षि नारद राजा हिमालय के महल में आ पहुँचे और पार्वती को देख कहने लगे कि इसका विवाह शंकरजी के साथ होना चाहिए और वे ही सभी दृष्टि से इसके योग्य हैं। पार्वती के

वेदसार शिवस्तव: || Vedsar shivstav ||

 वेदसार शिवस्तव: पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥ महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥ गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम् भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गंभवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥ शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन् त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥ परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥ न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु- र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥ अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम् तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥ नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥