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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

दुर्गा सप्तशती पाठ 4 चतुर्थ अध्याय || by geetapress gorakhpur ||p

 ॥ श्री दुर्गा सप्तशती ॥ चतुर्थोऽध्यायः इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति ॥ध्यानम्॥ ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां शड्‌खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्। सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥ सिद्धि की इच्छा रखनेवाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं, उन ‘जया ’ नामवाली दुर्गादेवी का ध्यान करे । उनके श्रीअंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है । वे अपने कटाक्षों से शत्रुसमूह को भय प्रदान करती हैं । उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है । वे अपने हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं । उनके तीन नेत्र हैं । वे सिंह के कंधेपर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनों लोकोंको परिपूर्ण कर रही हैं । "ॐ" ऋषिरुवाच*॥१॥ शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या। तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्‌गमचारुदेहाः॥२॥ ऋषि कहते हैं - ॥१॥ अत्यन्त पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर तथा उसक

दुर्गा सप्तशती पाठ 3 तृतीय अध्याय || by geetapress gorakhpur ||

 ॥ श्री दुर्गा सप्तशती ॥ तृतीयोऽध्यायः सेनापतियों सहित महिषासुर का वध ॥ध्यानम्॥ ॐ उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम्। हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम्॥ जगदम्बा के श्रीअंगों की कान्ति उदयकालके सहस्त्रों सुर्यों के समान है । वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं । उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही है । दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है । वे अपने कर - कमलों में जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं । तीन नेत्रों में सुशोभित मुखारविन्द की बड़ी शोभा हो रही है । उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमल के आसनपर विराजमान हैं । ऐसी देवी को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ । "ॐ" ऋषिररुवाच॥१॥ निहन्यमानं तत्सैन्यमवलोक्य महासुरः। सेनानीश्चिक्षुरः कोपाद्ययौ योद्धुमथाम्बिकाम्॥२॥ ऋषि कहते हैं ॥१॥ दैत्यों की सेना को इस प्रकार तहस - नहस होते देख महादैत्य सेनापति चिक्षुर क्रोध में भरकर अम्बिकादेवी से युद्ध करने के लिय

दुर्गा सप्तशती पाठ 2 द्वितीय अध्याय || by geetapress gorakhpur ||

 ॥ श्री दुर्गा सप्तशती ॥ द्वितीयोऽध्यायः देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध ॥विनियोगः॥ ॐ मध्यमचरित्रस्य विष्णुर्ऋषिः, महालक्ष्मीर्देवता, उष्णिक् छन्दः, शाकम्भरी शक्तिः, दुर्गा बीजम्, वायुस्तत्त्वम्, यजुर्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं मध्यमचरित्रजपे विनियोगः। ऊँ मध्यम चरित्र के विष्णु ऋषि, महालक्ष्मी देवता, उष्णिक् छन्द, शाकम्भरी शक्ति, दुर्गा बीज,वायु तत्त्व और यजुर्वेद स्वरूप है । श्रीमहालक्ष्मीकी प्रसन्नताके लिये मध्यम चरित्र के पाठमें इसका विनियोग है। ॥ध्यानम्॥ ॐ अक्षस्रक्‌परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्। शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥ मैं कमलके आसनपर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढ़ाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं । "ॐ ह्रीं" ऋषिरुवाच॥१॥ देवासुरमभूद्युद्धं पूर्णमब्

श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् shree baglastotra satnam stotra

श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥ ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी, माता श्रीबगलामुखी । चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥ महा-विद्या महा-लक्ष्मी, श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी । भुवनेशी जगन्माता, पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥ ललिता भैरवी शान्ता, अन्नपूर्णा कुलेश्वरी । वाराही छिन्नमस्ता च, तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥ जगत् -पूज्या महा-माया, कामेशी भग-मालिनी । दक्ष-पुत्री शिवांकस्था, शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥ सर्व-सम्पत्-करी देवी, सर्व-लोक वशंकरी । वेद-विद्या महा-पूज्या, भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥ स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च, दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी । भक्त-प्रिया महा-भोगा, श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥ मेना-पुत्री शिवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी । नारसिंही नरेन्द्रा च, नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥ नागिनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा । पीताम्बरा पीत-पुष्पा च, पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥ पीत-गन्ध-प्रिया रामा, पीत-रत्नार्चिता शिवा । अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी, गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥ सावित्री त्रि-पदा शुद्धा, सद्यो राग-विवर्द्धिनी । विष्णु-रुपा जगन्मोहा, ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥ रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद