https://www.sambhooblog.in/?m=1 sambhooblog (सहायक जानकारी, एक कदम ज्ञान की ओर) सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

रुद्र अष्टकम ।। रूद्राष्टकम ।।

 ।। रूद्राष्टकम ।।   नमामीशमीशान निर्वाण रूपं,     विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,     चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌।।   निराकार मोंकार मूलं तुरीयं,     गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌। करालं महाकाल कालं कृपालुं,     गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं,     मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा,    लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।   चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं,     प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्‌। मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं,     प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि।।   प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं,     अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌। त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं,     भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्‌।।   कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,    सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी। चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी,     प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।   न यावद् उमानाथ पादारविन्दं,     भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्‌। न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं,    प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं।।   न जानामि योगं जपं नैव पूजा,    न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्