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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कालभैरव साधना विधि और नाम / kaal bhairav sadhna

  श्री कालभैरवाष्टमी सर्वश्रेष्ठ है यह साधना करने के लिए  दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं श्री भैरव। श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव। क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार,...

दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र || Daridya dahan shiv stotram ||

  ।। दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र ।।  देव बड़े दाता बड़े शंकर बड़े भोरे।  किये दूर दु:ख सबन के जिन-जिननें कर जोरे।। त्रिलोक में वन्दनीय भगवान शिव अकिंचन हैं, त्रिदेवों में निराले हैं- संसार से निर्लिप्त, स्वयं अपने पास कुछ भी नहीं, मृत्युरूपी सर्प को गले में लिपटाए हुए, परन्तु संसार का सर्वश्रेष्ठ सुख व वैभव उनकी मुट्ठी में है। हाथ में त्रिशूल द्वारा संसार के तीन महान अवगुणों- क्रोध, मोह व लोभ पर उनका अंकुश है। सारे संसार की सम्पत्तियां उनके पैरों में लोटती हैं। जिस समय वह नन्दीबैल पर सवार होकर बाहर निकलते हैं, उस समय स्वर्गाधिपति इन्द्र अपने ऐरावत हाथी से उतरकर भगवान शिव के चरणों पर अपना मस्तक टेकते हैं और अपने मुकुट में लगे पारिजात पुष्पों से भगवान शिव के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। अपना जीवन अकिंचन रखने वाले औघड़दानी शिव जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसे सभी कुछ दे देते हैं। संसार में मांगने वाला किसी को अच्छा नहीं लगता किन्तु भोले-भंडारी मुंह-मांगा वरदान देने में कुछ भी आगा-पीछा नहीं सोचते। जरा-सी भक्ति करने पर, आक, धतूरा, बेलपत्र व जल चढ़ाने मात्र से और गाल बजा...

हृदय की बीमारी और इसके आयुर्वेदिक इलाज

  हृदय की बीमारी और इसके आयुर्वेदिक इलाज   हमारे देश भारत मे ३००० साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे, उनका नाम था महाऋषि वागवट जी  उन्होने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है अष्टांग हृदयम (Astang hrudayam) इस पुस्तक मे उन्होने  बीमारियो को ठीक करने के लिए ७००० सूत्र लिखे थे, यह उनमे से ही एक सूत्र है  वागवट जी लिखते है कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है. मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity (अम्लता) बढ़ी हुई है.  अम्लता आप समझते है..  जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity  अम्लता दो तरह की होती है.  एक होती है पेट कि अम्लता और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता. आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है. खट्टी खट्टी डकार आ रही है, मुंह से पानी निकाल रहा है और अगर ये अम्लता (acidity) और बढ़ जाये तो hyperacidity होगी  और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता  (blood acidity) होती hai और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त द...

शिवाष्टकम् || शिव अष्टकम् Shiv Ashtakam ||

 ।। शिवाष्टकम् ।। (शिव अष्टकम्) प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं     जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम्। भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं     महाकालकालं गणेशाधिपालम्। जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं     महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्। अनादिं ह्यपारं महामोहमारं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। तटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं     महापापनाशं सदा सुप्रकाशम्। गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। गिरीन्द्रात्मजासङ्गृहीतार्धदेहं     गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्निगेहम्। परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्वन्द्यमानं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं     पदांभोजनम्राय कामं ददानम्। बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं    शिवं शङ्करं शंभुमीशानमीडे।। शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्दपात्रं    त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्। अपर्णाक...

मारुती स्तोत्रम् || Maaruti stotram ||

 ।। मारुतिस्तोत्रम् ।। ॐ नमो वायुपुत्राय भीमरूपाय धीमते। नमस्ते रामदूताय कामरूपाय श्रीमते।। मोहशोकविनाशाय सीताशोकविनाशिने। भग्नाशोकवनायास्तु दग्धलङ्काय वाग्मिने।। गतिनिर्जितवाताय लक्ष्मणप्राणदाय च। वनौकसां वरिष्ठाय वशिने वनवासिने।। तत्त्वज्ञानसुधासिन्धुनिमग्नाय महीयसे। आञ्जनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते।। जन्ममृत्युभयघ्नाय सर्वक्लेशहराय च। नेदिष्ठाय प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे।। यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरूपिणे। यक्षराक्षसशार्दूलसर्पवृश्चिकभीहृते।। महाबलाय वीराय चिरञ्जीविन उद्धते। हारिणे वज्रदेहाय चोल्लङ्घितमहाब्धये।। बलिनामग्रगण्याय नमो नमः पाहि मारुते। लाभदोऽसि त्वमेवाशु हनुमन् राक्षसान्तक। यशो जयं च मे देहि शत्रून्नाशय नाशय।। सङ्गीतेन वशीकरोति वरदं क्ष्माजाधवं राघवं यश्चामीकरचारुगात्रसुषमां विस्तारयत्यद्भुताम्। नानातालकलाकलापनिपुणः कौशन्यवद्गायति स प्रीणातु प्रशस्तगानरसिकव्यामोदिशाखामृगः।। दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्।। मारुतिं वीरवज्राङ्गं भक्तरक्षणदीक्षितम्। हनुमन्तं सदा वन्दे राममन्त्रप्रचारकम्।। हनुमन्नञ्जनासूनो वायुपुत्र महाब...