शिव विवाह की कथा||Shiv viwah ki katha ||1 शिव विवाह 1 जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥ जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता॥ भृंगी के अवाहन पर सभी भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल, डाकिनी, जोगिनी, शिव जी की बारात में शामिल हुए शिव जी अपने पूरे समाज को देखकर मन ही मन विष्णु जी की इच्छा को पूरी करते है अब तो बारात वर के योग्य हो गई है ऐसी बारात को देख कर देवता प्रसन्न हो रहे है शंकर जी के गण विलक्षण है किसी का तो मुख ही नहीं है, किसी किसी के तो कई मुख है, किसी किसी के तो हाथ पैर नहीं है, और किसी किसी के बहुत से हाथ पैर है,कोई केकड़े जैसा बहुत हाथ पैर वाला है। किसी किसी की आँख ही नहीं है और किसी किसी के सिर ही नहीं है, कोई कोई तो बहुत मोटा है और कोई अत्यन्त दुर्बला पतला है। कोई तो काला है और कोई कोई तो बहुत गोरा है बाबा ने सारे संसार के उपेक्षित वर्ग जिसको कोई पूछता नहीं है उसको अपने विवाह में बुलवाया। सभी गणो की आवाज बकरे, उल्लू , भेड़िये जैसी है। किसी ने पूछा बाबा आपके तो बड़े बड़े मंदिर है पर मंदिरों को छोड़ कर मरघट में ...
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