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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

बिल्वाष्टकम्. से करे भोलेनाथ को प्रसन्न

बिल्वाष्टकम्   त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् । त्रिजन्मपाप-संहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।1।।    त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रै: कोमलै: शुभै: । शिवपूजां करिष्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।2।।  अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे । शुद्धयन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।3।।    शालिग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्। सोमयज्ञ-महापुण्यमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।4।।    दन्तिकोटिसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च । कोटिकन्या-महादानमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।5।।    लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्। बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।6।।    दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोरपापसंहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।7।।    काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम्। प्रयागमाधवं दृष्ट्वा एक बिल्वं शिवार्पणम्  ।।8।।    मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे । अग्रत: शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।9।।    बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ। सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्।।10।।    इति  सम्पूर्णम्।।

शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram) रावन रचित शिव तांडव स्तोत्रम्

शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram) ॐ हर हर महादेव ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥ जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥ धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि   क्वचिच्चिदम्बरे  मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥ जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे। मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥ सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः। भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥ ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥ करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके। धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचा

दसमहाविद्या स्तोत्रम : गुप्त नवरात्रि मे माँ की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु जरूर करे इसका पाठ

 गुप्त नवरात्रि विशेष दसमहाविद्या स्तोत्रम ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि । नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥ शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥ जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् । करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥ हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् । गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥ हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥ मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् । प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥ उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् । नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥ श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥ विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् । आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥ श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥ त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् । शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां

कुंडली में घर का सुख और स्वयं के भूमि और भवन का सुख कैसे जाने अपना घर कब बनेगा

मकान सुख और ज्योतिष: मकान का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्रऔर चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों मेंं रहती है। कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। कुछ लोगों को मकान हर दृष्टि से फलदायी है। कोई टूटे-फूटे मकानों मेंं रहता है तो कोई आलिशान बंगले का स्वामी है।सुख-दुख जीवन के अनेक पहलुओं पर मकान एक परमावश्यकता बन गई है।जन्मपत्री मेंं भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।साथ ही मंगल की स्थिति का सुदृढ़ होन

दुर्गा सप्तशती का पाठ, श्री दुर्गा सप्तशती (चंडी)पाठ और दुर्गा जी की स्तुति

मार्र्कण्डे पुराण का एक भाग श्री दुर्गा सप्तसती।। के रूप में जग विख्यात है, तन्त्र, ज्ञान,भक्ति औऱ साधना के क्षेत्रों में इसका अमूल्य योगदान है।। प्रायः सभी सनातन (हिन्दू)धर्मालम्बी इस महानतम  ग्रंथ को बढ़ते है,या जानते हैं।। परंतु बहुत कम ही लोग हैं, जो इसके पाठ का सही क्रम जानते हैं, और उनके मन मे ये जिज्ञासा रहती है कि इसके पाठ का सही क्रम क्या है। इस विषय पर पहले भी कई आचार्य,गुरुजन लिख चूके हैं। ये कोई नवीनतम रचना नही परंतु आपके जानकारी और मार्गदर्शन के लिए प्रस्तुत है श्रीदुर्गासप्तसती के पाठ का सही क्रम,और नियम।। ।।।अथ श्री दुर्गा सप्तशती (चंडी)पाठ।।। भुवनेश्वरीसंहिता में कहा गया है....  "यथा वेदो ह्यनादिर्हि तथा सप्तशती मता" अर्थात जिस प्रकार वेद अनादि हैं, उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि ही है।  व्यासजी ने मानवकल्याण मात्रा से ही मार्कण्डेयपुराण में इसका प्रकाशन किया है। मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है- शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी। तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:॥ सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो