https://www.sambhooblog.in/?m=1 दसमहाविद्या स्तोत्रम : गुप्त नवरात्रि मे माँ की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु जरूर करे इसका पाठ सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

दसमहाविद्या स्तोत्रम : गुप्त नवरात्रि मे माँ की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु जरूर करे इसका पाठ

 गुप्त नवरात्रि विशेष दसमहाविद्या स्तोत्रम


ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।

नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।

करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।

गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।

प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।

नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।

आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।

शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥११॥

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।

नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥१२॥

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।

सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥१३॥

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।

महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥१४॥

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥१५॥

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम् ।

चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥१६॥

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।

अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥१७॥

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।

षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥१८॥

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।

प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥१९॥

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।

पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥२०॥


   जय शिव शक्ति... जय माता दी... 








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