सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दसमहाविद्या स्तोत्रम : गुप्त नवरात्रि मे माँ की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु जरूर करे इसका पाठ

 गुप्त नवरात्रि विशेष दसमहाविद्या स्तोत्रम


ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।

नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।

करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।

गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।

प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।

नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।

आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।

शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥११॥

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।

नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥१२॥

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।

सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥१३॥

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।

महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥१४॥

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥१५॥

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम् ।

चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥१६॥

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।

अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥१७॥

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।

षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥१८॥

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।

प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥१९॥

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।

पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥२०॥


   जय शिव शक्ति... जय माता दी... 








टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्रीं राम स्तुति || hanuman Chalisa ||

Hanuman Chalisa or Aarti:  मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, इससे शनि जनित पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है, (चाहे शनि की ढैय्या हो या साढ़ेसाती) । इन दिनों में हनुमान जी के मंदिरों में जाकर भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं साथ ही इनका प्रिय बूंदी का प्रसाद चढ़ाते हैं। बजरंगबली को संकटमोचक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों के सभी संकट दूर कर देते हैं। शास्त्रों और पुराणों अनुसार हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करके आरती करे और हनुमानजी को बूँदी का भोग लगाए. आइए शुरू करे हनुमान चालीसा का पाठ -    दोहा : श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।  बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।    चौपाई :   जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।     महाबीर बिक्रम बजरंग   कुमति निवार सुमति के संगी ।।   कंचन बरन बिराज सुबे...

दुर्गा सप्तशती पाठ 12 द्वादश अध्याय || by geetapress gorakhpur ||

  ।। श्री दुर्गा सप्तशती ॥ द्वादशोऽध्यायः देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म् ॥ध्यानम्॥ ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्। हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥ मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवी का ध्यान करता हूँ, उनके श्रीअंगों की प्रभा बिजली के समान है । वे सिंह के कंधेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं । हाथों में तलवार और ढ़ाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवा में खड़ी हैं ।वे अपने हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढ़ाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं । उनका स्वरूप अग्निमय है तथा वे माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं । "ॐ" देव्युवाच॥१॥ एभिः स्तवैश्च् मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः। तस्याहं सकलां बाधां नाशयिष्याम्यसंशयम्*॥२॥ देवी बोली- ॥१॥ देवताओं ! जो एकाग्रचित होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा स्तवन करेगा, उसकी सारी बाधा निश्चय हीं दूर कर दूँगी ॥२॥ मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम्। कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद् वधं शुम्भनिशुम्भयोः॥३॥ जो मधुकैटभ का नाश, महिषा...

दुर्गा सप्तशती पाठ 4 चतुर्थ अध्याय || by geetapress gorakhpur ||p

 ॥ श्री दुर्गा सप्तशती ॥ चतुर्थोऽध्यायः इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति ॥ध्यानम्॥ ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां शड्‌खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्। सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥ सिद्धि की इच्छा रखनेवाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं, उन ‘जया ’ नामवाली दुर्गादेवी का ध्यान करे । उनके श्रीअंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है । वे अपने कटाक्षों से शत्रुसमूह को भय प्रदान करती हैं । उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है । वे अपने हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं । उनके तीन नेत्र हैं । वे सिंह के कंधेपर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनों लोकोंको परिपूर्ण कर रही हैं । "ॐ" ऋषिरुवाच*॥१॥ शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या। तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्‌गमचारुदेहाः॥२॥ ऋषि कहते हैं - ॥१॥ अत्यन्त पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर तथा उसक...