अरहड़ की दाल
गुण
1. निघंटुकारों के अनुसार अरहर रूक्ष, मधुर, कसैली, शीतल, पचने में हल्की, मलावरोधक, वायुकारक, शरीर के वर्ण को सुंदर बनानेवाली, कफ एवं रक्त संबंधी विकारों को दूर करनेवाली है।
2. लाल अरहर की दाल मलावरोधक, हल्की, तीक्ष्ण तथा गरम बताई गई है।
3. इसके अलावा यह अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली; कफ, विष, रक्तविकार, खुजली तथा जठर के कृमियों को दूर करनेवाली है।
4. अरहर की दाल पथ्यकर, कुछ-कुछ वातल, कृमि त्रिदोषनाशक कही गई है।
5. यह रुचिकारक, बलकारक, ज्वरनाशक, पित्तदोष तथा गुल्म रोगों में लाभकारी है।
6. अरहर में प्रोटीन 21-26, चिकनाई 2.50, कार्बोज 54.06, कार्बोहाइड्रेट्स 60, खनिज लवण 5.50 तथा जल की मात्रा 10 प्रतिशत तक होती है।
उपयोग
• अरहर की दाल खाने में बड़ी स्वादिष्ट होती है, अतः इसकी उपयोगिता हर घर की रसोई में है।
• अरहर की कच्ची हरी फलियों में से दाने निकालकर उसकी स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है तथा अन्य सब्जियों बैंगन, आलू आदि के साथ इसे बनाया जाता है।
• अरहर के दानों को उबालकर पर्याप्त जल में छौंककर स्वादिष्ट पतली तरकारी बताई जाती है।
• इसकी दाल से 'पूरन' बनाया जाता है।
• अरहर की दाल में इमली, आम की खटाई तथा गरम मसाले डालकर बनाने से यह बेहद रुचिकर बन जाती है।
• वैसे यह दाल पेट में गैस बनाती है, परंतु पर्याप्त मात्रा में देसी घी डालकर खाने से यह गैस नहीं बनाती। चूँकि यह त्रिदोषहर है, इसलिए छोटे-बड़े सभी के लिए अनुकूल है।
• यह दाल गरम तथा रूक्ष तो होती ही है, जिनको इसकी प्रकृति के कारण नुकसानदेह हो जाती है, वे भाई-बहन इसकी दाल को देसी घी में छौंककर सेवन करें।
• दाल के अलावा अरहर के पौधे की कोमल टहनियाँ, पत्ते आदि दुधारू पशुओं को खिलाए जाते हैं। अरहर की सूखी लकड़ी गाँव में मकानों की छत पाटने, झोंपड़ी, छप्पर, बुर्ज तथा बाड़ बनाने में उपयोगी है। देहात में यह जलावन के रूप में सस्ता ईंधन है।
औषधीय प्रयोग
अरहर के पत्तों (अलफ) को पीसकर लुगदी सी बना लें; इसे कटे-फटे या घाव पर बाँधने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं।
अरहर के ताजा पत्तों का रस बार-बार पिलाने से अफीम तथा विष का असर कम हो जाता है। इसके अलावा अरहर की दाल को पानी में कुछ देर भिगोकर बारीक पीस लें, फिर इसे छानकर पिलाने से भाँग का नशा शीघ्र उतर जाता है।
अरहर की दाल को साफ पानी में पीसकर अथवा पत्थर पर घिसकर आँख की फुसी या गुहेरी पर दिन में दो-तीन बार लगाने से वह ठीक हो जाती है।
अरहर के ताजा पत्तों का रस तथा दूब रस सम मात्रा में मिलाकर नस्य देने से छींकें आती हैं और फिर आधासीसी का दर्द शांत हो जाता है। यह प्रयोग लगातार तीन दिन करें।
अरहर के ताजा पत्तों का रस 10 ग्राम तथा देसी घी 30 ग्राम मिलाकर पीने से रक्त-पित्त मिट जाता है; मुँह तथा नाक से होनेवाला रक्तस्राव भी बंद हो जाता है।
अरहर के पत्तों को जलाकर राख बना लें; इस राख को ताजा दही में मिलाकर खाज-खुजली पर लगाने से खुजली शांत हो जाती है।
अरहर की दाल को नमक और सौंठ मिलाकर छौंक लें; इसकी लुगदी बनाकर शरीर की मालिश करने से हड़फूटन मिटती है। सर्दी-कँपकँपी भी दूर हो जाती है।
अरहर की दाल को साफ जल के साथ पीसकर पुल्टिस बना लें, फिर इसे हलका गरम करके सूजनवाले स्थान पर बाँधे, इसे दो-चार बार प्रयोग करने से सोज उतर जाती है।
छिलके सहित अरहर की दाल को एक गिलास पानी में भिगोकर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला-गरारे करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। इससे शरीर और पेट की गरमी भी शांत होती है। इसके अलावा अरहर के ताजा कोमल पत्ते चबाने से भी मुँह के छालों में आराम मिलता है।
अरहर के ताजा कोमल 20 ग्राम पत्तों को शुद्ध जल के साथ पीस लें; अब इसे एक या पौन गिलास पानी में घोलकर छान लें; मिश्री या खाँड़ डालकर रोगी को पिला दें। इसकी एक ही खुराक में आराम दिखने लगेगा।
अरहर के कोमल पत्ते तथा मिश्री को मुँह में रखकर धीरे-धीरे पान की तरह चबाते हुए इसका रस चूसते रहें; इससे गले की खिचखिच तथा खाँसी में लाभ होता है।
अरहर की दाल का सूप बनाएँ, उसमें शुद्ध देसी घी मिलाकर शिशु को दुग्धपान करानेवाली माताओं को नित्य सेवन करना चाहिए, इससे स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।
अरहर की बिना छिलकेवाली दाल में प्रोटीन, वसा, विटामिन 'ए', 'बी', खजिन-लवण, कार्बोज, फॉस्फोरस तथा लौह तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
ज्यादा खाने पर यह पेट में गैस पैदा करती है, अतः देसी घी का तड़का लगाकर खाएँ।
व्यापारी इसकी दाल में प्रतिबंधित त्योरी या करसे की दाल की मिलावट कर देते हैं, अतः अरहर की शुद्ध दाल का ही सेवन करें।
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