https://www.sambhooblog.in/?m=1 दुर्गा सप्तशती पाठ 7 सप्तम अध्याय || by geetapress gorakhpur || सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

|| हम बार बार बीमार क्यों होते हैं, कैसे जाने || क्या है रोग

रोग को  कैसे समझो... डॉक्टर के पास जा रहे हो......??? क्या ढूंढने.......?? अपनी बीमारी का इलाज खोजने ...... क्या कहेगा आपका बड़ा महंगा डॉक्टर...??? अनेक जांच करवाएगा,  आपकी बीमारी को एक अच्छा , औऱ बड़ा नाम देगा......... और आप खुश हो जायेगे की दवा अब चमत्कार करेगी, घरवाले भी आपको टाइम पर दवाएं देकर अपना सारा दायित्व निभाएंगे....... क्या आप बीमारी को समझते है...... बुखार आपका मित्र है जैसे ही कोई वायरस शरीर मे आता है, शरीर अपना तापमान बढा देता है, वह तापमान को बढाकर उस वायरस को मारना जाता है, लेकिन आप गोली देकर तापमान कम कर देते है, जिससे वायरस शरीर मे घर बना लेता है और 4-6 महीने में बड़े रोग के रूप में आता है,  सूजन आपकी दोस्त है जैसे ही आपको कोई चोट लगी, दर्द हॉगा, कुछ घण्टे के बाद सूजन आ जायेगी, दरअसल चोट लगने के बाद उस स्थान पर रक्त रूकने लगता है, तो दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है, जिससे चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है, सूजन आती ही इसीलिये है, की शरीर वहां पर पानी की मात्रा को बढा देता है, जिससे रक्त ना जमे, और तरल होकर रक्त निकल जाए, शरीर तो अपना काम कर रहा था,  लेकिन आप जैसे ही गोली

दुर्गा सप्तशती पाठ 7 सप्तम अध्याय || by geetapress gorakhpur ||

 ॥ श्री दुर्गा सप्तशती ॥

सप्तमोऽध्यायः

चण्ड और मुण्डका वध


॥ध्यानम्॥ 

ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्‌गीं।

न्यस्तैकाङ्‌घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम्।

कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां

मातङ्‌गीं शङ्खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥

मैं मातंगी देवी का ध्यान करता हूँ । वे रत्नमयी सिंहासनपर बैठकर पढ़ते हुए तोते का मधुर शब्द सुन रही हैं । उनके शरीर का वर्ण श्याम है । वे अपना एक पैर कमलपर रखे हुए हैं और मस्तकपर अर्धचन्द्र धारण करती हैं तथा कह्लार - पुष्पों की माला धारण किये वीणा बजाती हैं । उनके अंग में कसी हुई चोली शोभा पा रही है । वे लाला रंग की साड़ी पहने हाथ में शंखमय पात्र लिये हुए हैं । उनके वदन पर मधु का हलका - हलका प्रभाव जान पड़ता है और ललाट में बेंदी शोभा दे रही है ।

"ॐ" ऋषिरुवाच॥१॥

आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चसण्डमुण्डपुरोगमाः।

चतुरङ्गाबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः॥२॥

ऋषि कहते हैं- ॥१॥

तदनन्तर शुम्भ की आज्ञा पाकर वे चण्ड - मुण्ड आदि दैत्य चतुरंगिणी सेना के साथ अस्त्र - शस्त्रों से सुसज्जित हो चल दिये ॥२॥

ददृशुस्ते ततो देवीमीषद्धासां व्यवस्थिताम्।

सिंहस्योपरि शैलेन्द्रशृङ्‌गे महति काञ्चने॥३॥

फिर गिरिराज हिमालय के सुवर्णमय ऊँचे शिखर पर पहुँचकर उन्होंने सिंह पर बैठी देवी को देखा । वे मन्द - मन्द मुसकरा रही थीं ॥ ३॥

ते दृष्ट्‌वा तां समादातुमुद्यमं चक्रुरुद्यताः।

आकृष्टचापासिधरास्तथान्ये तत्समीपगाः॥४॥

उन्हें देखकर दैत्यलोग तत्परता से पकड़ने का उद्योग करने लगे । किसी ने धनुष तान लिया, किसी ने तलवार सँभाली और कुछ लोग देवी के पास आकर खड़े हो गये ॥४॥

ततः कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन् प्रति।

कोपेन चास्या वदनं मषी*वर्णमभूत्तदा॥५॥

तब अम्बिका ने उन शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया । उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया ॥५॥

भ्रुकुटीकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद्द्रुतम्।

काली करालवदना विनिष्क्रान्तासिपाशिनी॥६॥

ललाट में भौंहे टेढ़ी हो गयीं और वहाँ से तुरंत विकरालमुखी काली प्रकट हुईं, जो तलवार और पाश लिये हुए थीं ॥६॥

विचित्रखट्‌वाङ्‌गधरा नरमालाविभूषणा।

द्वीपिचर्मपरीधाना शुष्कमांसातिभैरवा॥७॥

वे विचित्र खट्वांग धारण किये और चीते के चर्म की साड़ी पहने नर - मुण्डों की माला से विभूषित थीं । उनके शरीर का मांस सूख गया था, केवल हड्डियों का ढ़ाँचा था, जिससे वे अत्यन्त भयंकर जान पड़ती थीं ॥७॥

अतिविस्तारवदना जिह्वाललनभीषणा।

निमग्नारक्तनयना नादापूरितदिङ्‌मुखा॥८॥

उनका मुख बहुत विशाल था, जीभ लपलपाने के कारण वे और भी डरावनी प्रतीत होती थीं । उनकी आँखें भीतर को धँसी हुई और कुछ लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाओं को गुँजा रही थीं ॥८॥

सा वेगेनाभिपतिता घातयन्ती महासुरान्।

सैन्ये तत्र सुरारीणामभक्षयत तद्‌बलम्॥९॥

बड़े - बड़े दैत्यों का वध करती हुई वे कालिकादेवी बड़े वेग से दैत्यों की सेनापर टूट पड़ीं और उन सबको भक्षण करने लगीं ॥९॥

पार्ष्णिग्राहाङ्‌कुशग्राहियोधघण्टासमन्वितान्।

समादायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वारणान्॥१०॥

वे पार्श्वरक्षकों, अंकुशधारी महावतों, योद्धाओं और घण्टा सहित कितने ही हाथियों को एक ही हाथ से पकड़कर मुँह में डाल लेती थीं ॥१०॥

तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह।

निक्षिप्य वक्त्रे दशनैश्चनर्वयन्त्य*तिभैरवम्॥११॥

इसी प्रकार घोड़े, रथ और सारथि के साथ रथी सैनिकों को मुँह में डालकर वे उन्हें बड़े भयानक रूप से चबा डालती थीं ॥११॥

एकं जग्राह केशेषु ग्रीवायामथ चापरम्।

पादेनाक्रम्य चैवान्यमुरसान्यमपोथयत्॥१२॥

किसी के बाल पकड़ लेतीं, किसी का गला दबा देतीं, किसी को पैरों से कुचल डालतीं और किसी को छाती के धक्के से गिराकर मार डालती थीं ॥१२॥

तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि तथासुरैः।

मुखेन जग्राह रुषा दशनैर्मथितान्यपि॥१३॥

वे असुरों के छोड़े हुए बड़े - बड़े अस्त्र - शस्त्र मुँह से पकड़े लेतीं और रोष में भरकर दाँतों से पीस डालती थीं ॥१३॥

बलिनां तद् बलं सर्वमसुराणां दुरात्मनाम्।

ममर्दाभक्षयच्चान्यानन्यांश्चाताडयत्तथा॥१४॥

काली ने बलवान् एवं दुरात्मा दैत्यों की वह सारी सेना रौंद डाली, खा डाली और कितनों को मार भगाया ॥१४॥

असिना निहताः केचित्केचित्खट्‌वाङ्‌गताडिताः*।

जग्मुर्विनाशमसुरा दन्ताग्राभिहतास्तथा॥१५॥

कोई तलवार के घाट उतारे गये, कोई खट्वांग से पीटे गये और कितने ही असुर दाँतोंके अग्रभाग से कुचले जाकर मृत्यु को प्राप्त हुए ॥१५॥

क्षणेन तद् बलं सर्वमसुराणां निपातितम्।

दृष्ट्‌वा चण्डोऽभिदुद्राव तां कालीमतिभीषणाम्॥१६॥

इस प्रकार देवी ने असुरों की उस सारी सेना को क्षणभर में मार गिराया । यह देख चण्ड उन अत्यन्त भयानक कालीदेवी की ओर दौड़ा ॥१६॥

शरवर्षैर्महाभीमैर्भीमाक्षीं तां महासुरः।

छादयामास चक्रैश्च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः॥१७॥

तथा महादैत्य मुण्ड ने भी अत्यन्त भयंकर बाणों की वर्षा से तथा हजारों बार चलाये हुए चक्रों से उन भयानक नेत्रोंवाली देवी को आच्छादित कर दिया ॥१७॥

तानि चक्राण्यनेकानि विशमानानि तन्मुखम्।

बभुर्यथार्कबिम्बानि सुबहूनि घनोदरम्॥१८॥

वे अनेकों चक्र देवी के मुख में समाते हुए ऐसे जान पड़े, मानो सुर्य के बहुतेरे मण्डल बादलों के उदर में प्रवेश कर रहे हों ॥१८॥

ततो जहासातिरुषा भीमं भैरवनादिनी।

कालीकरालवक्त्रान्तर्दुर्दर्शदशनोज्ज्वला॥१९॥

तब भयंकर गर्जना करनेवाली काली ने अत्यन्त रोष में भरकर अट्टहहास किया । उस समय उनके विकराल वदन के भीतर कठिनता से देखे जा सकने वाले दाँतों की प्रभा से वे अत्यन्त उज्ज्वल दिखायी देती थीं ॥१९॥

उत्थाय च महासिं हं देवी चण्डमधावत।

गृहीत्वा चास्य केशेषु शिरस्तेनासिनाच्छिनत्*॥२०॥

देवी ने बहुत बड़ी तलवार हाथ में ले ‘हं’ का उच्चारण करके चण्ड पर धावा किया और उसके केश पकड़कर उसी तलवार से उसका मस्तक काट डाला ॥२०॥

अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्‌वा चण्डं निपातितम्।

तमप्यपातयद्भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा॥२१॥

चण्ड को मारा गया देखकर मुण्ड भी देवी की ओर दौड़ा । तब देवी ने रोष में भरकर उसे भी तलवार से घायल करके धरती पर सुला दिया ॥२१॥

हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्‌वा चण्डं निपातितम्।

मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो भेजे भयातुरम्॥२२॥

महापराक्रमी चण्ड और मुण्ड को मारा गया देख मरने से बची हुई बाकी सेना भय से व्याकुल हो चारों ओर भाग गयी ॥२२॥

शिरश्चण्डस्य काली च गृहीत्वा मुण्डमेव च।

प्राह प्रचण्डाट्टहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम्॥२३॥

तदनन्तर काली ने चण्ड और मुण्डका मस्तक हाथ में ले चण्डिका के पास जाकर अट्टहास करते हुए कहा- ॥२३॥

मया तवात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशू।

युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि॥२४॥

‘देवि ! मैंने चण्ड और मुण्ड नामक इस दो महापशुओं को तुम्हें भेंट किया है । अब युद्ध यज्ञ में तुम शुम्भ और निशुम्भ का स्वयं ही वध करना’ ॥२४॥

ऋषिरुवाच॥२५॥

तावानीतौ ततो दृष्ट्‌वा चण्डमुण्डौ महासुरौ।

उवाच कालीं कल्याणी ललितं चण्डिका वचः॥२६॥

ऋषि कहते हैं- ॥२५॥

वहाँ लाये हुए उन चण्ड - मुण्ड नामक महादैत्यों को देखकर कल्याणमयी चण्डी ने काली से मधुर वाणी में कहा- ॥२६॥

यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता।

चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवि भविष्यसि॥ॐ॥२७॥

‘देवि ! तुम चण्ड और मुण्ड को लेकर मेरे पास आयी हो, इसलिये संसार में चामुण्डा के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी ’ ॥२७॥


इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये चण्डमुण्डवधो नाम सप्तमोऽध्यायः॥७॥ उवाच २, श्लोकाः २५, एवम् २७, एवमादितः॥४३९॥

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमहात्म्यमें ‘चण्ड-मुण्ड- वध’ नामक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥७॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दुर्गा सप्तशती पाठ 12 द्वादश अध्याय || by geetapress gorakhpur ||

  ।। श्री दुर्गा सप्तशती ॥ द्वादशोऽध्यायः देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म् ॥ध्यानम्॥ ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्। हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥ मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवी का ध्यान करता हूँ, उनके श्रीअंगों की प्रभा बिजली के समान है । वे सिंह के कंधेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं । हाथों में तलवार और ढ़ाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवा में खड़ी हैं ।वे अपने हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढ़ाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं । उनका स्वरूप अग्निमय है तथा वे माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं । "ॐ" देव्युवाच॥१॥ एभिः स्तवैश्च् मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः। तस्याहं सकलां बाधां नाशयिष्याम्यसंशयम्*॥२॥ देवी बोली- ॥१॥ देवताओं ! जो एकाग्रचित होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा स्तवन करेगा, उसकी सारी बाधा निश्चय हीं दूर कर दूँगी ॥२॥ मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम्। कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद् वधं शुम्भनिशुम्भयोः॥३॥ जो मधुकैटभ का नाश, महिषा

हनुमान चालीसा और आरती, बजरंग बाण श्रीं राम स्तुति || hanuman Chalisa ||

Hanuman Chalisa or Aarti:  मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, इससे शनि जनित पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है, (चाहे शनि की ढैय्या हो या साढ़ेसाती) । इन दिनों में हनुमान जी के मंदिरों में जाकर भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं साथ ही इनका प्रिय बूंदी का प्रसाद चढ़ाते हैं। बजरंगबली को संकटमोचक भी कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों के सभी संकट दूर कर देते हैं। शास्त्रों और पुराणों अनुसार हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करके आरती करे और हनुमानजी को बूँदी का भोग लगाए. आइए शुरू करे हनुमान चालीसा का पाठ -    दोहा : श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।  बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।    चौपाई :   जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।     महाबीर बिक्रम बजरंग   कुमति निवार सुमति के संगी ।।   कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।   हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कां

मातंगी साधना समस्त प्रकार के भौतिक सुख प्रदान करती है maa matangi

माँ मातंगी साधना :  आप सभी को मेरा नमस्कार, आज मैं इस पोस्ट के माध्यम से आप सब को 9वी  महाविद्या माँ मातंगी की साधना के बारे में अवगत कराने का प्रयास करूँगा. मां के भक्त जन साल के किसी भी नवरात्री /गुप्त नवरात्री /अक्षय तृतीया या किसी भी शुभ मुहूर्त या शुक्ल पक्ष में शुरु कर सकते हैं. इस साल 2021 में गुप्त नवरात्री,  12 फरवरी 2021 से है,  मां को प्रसन्न कर सकते हैं और जो भी माँ मातंगी की साधना करना चाहते है, जो अपने जीवन में गृहस्थ समस्याओं से कलह कलेश आर्थिक तंगी ओर रोग ,तंत्र जादू टोना से पीड़ित है वो मां मातंगी जी की साधना एक बार जरूर करके देखे उन्हें जरूर लाभ होगा ये मेरा विश्वास है। मां अपने शरण में आए हुए हर भक्त की मनोकानाएं पूर्ण करती है।ये साधना रात को पूरे 10 बजे शुरू करे।इस साधना में आपको जो जरूरी सामग्री चाहिए वो कुछ इस प्रकार है।   मां मातंगी जी की प्रतिमा अगर आपको वो नहीं मिलती तो आप सुपारी को ही मां का रूप समझ कर उन्हें किसी भी तांबे या कांसे की थाली में अष्ट दल बना कर उस पर स्थापित करे ओर मां से प्रार्थना करे के मां मैं आपको नमस्कार करता हूं आप इस सुपारी को अपना रूप स्व