https://www.sambhooblog.in/?m=1 पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम् || Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam || सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम् || Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam ||

 || पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम्  || || Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam || नमो भूतनाथं नमो देवदेवं     नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् । नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं     भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥ सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं     सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं     भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥ श्मशाने शयानं महास्थानवासं     शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् । पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं     भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥ फणीनाग कण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं     गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । कटिं व्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं     भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥ शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं     बृहद्दिव्यकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् ।  फणी नागकर्णं सदा भालचन्द्रं       भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥ करे शूलधारं महाकष्टनाशं     सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् । धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं       भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥ उदानं सुदासं सुकैलासवासं       धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । अजा हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं     भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥ मुनीनां वरेण्यं ग

पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम् || Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam ||

 || पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकम्  ||

|| Sri Parvati Vallabh Neelkanthastkam ||


नमो भूतनाथं नमो देवदेवं

    नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।

नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥


सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं

    सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।

सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥


श्मशाने शयानं महास्थानवासं

    शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् ।

पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥


फणीनाग कण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं

    गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।

कटिं व्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥


शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं

    बृहद्दिव्यकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । 

फणी नागकर्णं सदा भालचन्द्रं  

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥


करे शूलधारं महाकष्टनाशं

    सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।

धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं  

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥


उदानं सुदासं सुकैलासवासं  

    धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।

अजा हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥


मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं

    द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।

अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं हि

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥


सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं

    सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।

मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं

    भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥


इति पार्वतीवल्लभ नीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।


॥ शुभमस्तु ॥





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