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padhmini ekadashi : पद्मिनी एकादशी व्रत,, इसका महत्व और पूजन विधि

पद्मिनी एकादशी  : हिंदू पंचांग के अनुसार, अधिक मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वालीं एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी ने कहा है। इसे कमला या पुरुषोत्तम एकादशी भी कहा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, जिस तरह से अधिक मास तीन साल में एक बार आता है, उसी प्रकार यह पद्मिनी एकादशी भी तीन साल में एक बार आता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, जो महीना अधिक हो जाता है, पद्मिनी एकादशी का व्रत भी उसी महीने पर निर्भर करता है। पद्मिनी एकादशी का कोई सूर्य मास या फिर चंद्र मास नहीं है। अतः यह पद्मिनी एकादशी अधिक मास में आती है।

पद्मिनी एकादशी (पद्मिनी एकादशी का महत्व):   पौराणिक मान्यता के अनुसार एसा माना जाता है कि पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को अति प्रिय है। कहा जाता है कि जो भी मनुष्य इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करता है, वह मनुष्य सभी बन्धनों के क्रम से मुक्त होकर भगवान विष्णु के परम धाम विष्णु लोक को प्राप्त करता है। उसे सभी प्रकार के यज्ञों का फल प्राप्त होता है। संसार से मुक्ति मिल जाती है, प्रभु की भक्ति प्राप्त होती है।

पद्मिनी एकादशी की (पद्मिनी एकादशी की पूजा और व्रत विधि)

* प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करे।

* निर्गल व्रत रखने वाले हो सके तो विष्णु पुराण का पाठ करे नहीं तो श्रवण करे

भगवान विष्णु को नारियल, बेल, सुपारी और फल अर्पित करे और फिर अगले दिन द्वादशी तिथि को विष्णु जी की पूजा करके, ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दक्षिण भगवान को बिदा करे और इसके बाद स्वयं भोजन करके ठंडाई खोले।

padhmini ekadashi vrat katha (पद्मिनी एकादशी व्रत कथा)  : पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग मे एक पराक्रमी राजा कृतिवीर्य था. इस राजा की कई सारी रानियाँ थी, लेकिन किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो सकीं. सन्तान हीन होने के कारण राजा और रानियाँ तमाम सुख होने के बाद भी दुखी थे, परेशान थे. तब राजा सन्तान प्राप्ति की कामना से रानियों सहित तपस्या करने चल पड़े. हज़ारों वर्षों तपस्या करने के बाद राजा के शरीर में सिर्फ हड्डियां ही शेष रह गई. परंतु उनकी तपस्या सफल न हो सकीं. तब एक रानी ने देवी सती अनुसूइया से सन्तान प्राप्ति का उपाय पूछा, देवी अनुसूइया माता ने उन्हें अधिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत करने का उपाय बताया और व्रत का पूरा विधि विधान बताया.

रानी ने देवी अनुसूइया द्वारा बताए गए विधि विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत किया. तब व्रत समाप्त होते ही स्वयं भगवान विष्णु प्रकट हो गए और रानी को वर मांगने के लिए कहा. तब रानी ने भगवान विष्णु से कहा कि हे प्रभु अगर आप मुझ पर प्रसन्न होकर वर देना ही चाहते हैं तो आप से विनती है कि आप मेरी जगह मेरे पति को उनकी इच्छा के अनुरूप वरदान दे.रानी के बचन सुनकर भगवान विष्णु ने राजा को वर मांगने के लिए कहा, हे राजन जो इच्छा हो कहे, उस समय राजा ने विष्णु के सामने पुत्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की और कहा कि मुझे एसा पुत्र प्रदान करे प्रभु जो सर्व गुण संपन्न हो, जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी और से पराजित ना हो. भगवान विष्णु तथास्तु कहकर विदा हो गए. कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो कार्तवीर्य  अर्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ. कालांतर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावन को भी बंधी बना दिया था.

एसा कहा जाता है कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पद्मिनी एकादशी के व्रत की कथा सुनाई थी और इसके महात्मन्य से अवगत कराया था. 

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