।। श्री गणेश चालीसा ।। जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल।। जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू।। जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता।। वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।। राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।। पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं।। सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित।। धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता।। ऋद्धि सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे।। कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी।। एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी।। भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।। अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।। अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।। मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला।। गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना।। अस कहि अन्त...
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