।। अद्भुत चमत्कारी बजरंग-बाण ।।
“बजरंग बाण” में पूरी श्रद्धा रखने और निष्ठापूर्वक उसके बार-बार दुहराने से हमारे मन में हनुमानजी की शक्तियां ज़मने लगती हैं। शक्ति के विचारों को मन में रमण करने से शरीर में वही शक्तियां बढ़ती हैं। शुभ विचारों को मन में जमाने से मनुष्य की भलाई की शक्तियों में वृद्धि होने लगती है, उसका सत् चित् आनंदस्वरूप खिलता जाता है, मामूली कष्टों और संकटों के निरोध की शक्तियां विकसित हो जाती हैं तथा साहस और निर्भीकता आ जाती है। इस प्रकार बजरंग-बाण में विश्वास रखने और उसे काम में लेने से कोई भी कायर मनुष्य निर्भय और शक्तिशाली बन सकता है।
बजरंग-बाण के श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर लेने से जो मनुष्य शक्ति के पुंज महावर हनुमानजी को स्थायी रूप से अपने मन में धारण कर लेता है, उसके सब संकट अल्पकाल में ही दूर हो जाते हैं।
साधक को चाहिए कि वह अपने सामने श्रीहनुमान जी की मूर्ति या उनका कोई चित्र रख ले और पूरे आत्मविश्वास और निष्ठाभाव से उनका मानसिक ध्यान करे। मन में ऐसी धारणा करे कि हनुमानजी की दिव्य शक्तियां धीरे धीरे मेरे अंदर प्रवेश कर रही हैं। मेरे अंतर तथा चारों ओर के वायुमंडल (आकाश)- में स्थित संकल्प के परमाणु उत्तेजित हो रहे हैं। ऐसे सशक्त वातावरण में निवास करने से मेरी मन:शक्ति बढ़ने में सहायता मिलती है। जब यह मूर्ति मन में स्थायी रूप से उतरने लगे, अंदर से शक्ति का स्रोत खुलने लगे, तभी बजरंग-बाण की सिद्धि समझनी चाहिए। श्रद्धायुक्त अभ्यास ही पूर्णता की सिद्धि में सहायक होता है। पूजन में हनुमानजी की शक्तियों पर एकाग्रता की परम आवश्यकता है....
बजरंगबाण
बजरंग बाण का नियमित रूप से पाठ आपको हर संकट से दूर रखता है। किन्तु अगर रात्रि में बजरंग बाण को इस प्रकार से सिद्ध किया जाये तो इसके चमत्कारी प्रभाव तुरंत ही आपके सामने आने लगते है। अगर आप चाहते है अपने शत्रु को परास्त करना या फिर व्यापार में उन्नति या किसी भी प्रकार के अटके हुए कार्य में पूर्णता तो रात्रि में नीचे दिए बजरंग बाण पाठ को अवश्य करें।
दोहा:-
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई:-
जय हनुमन्त सन्त हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै।
आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा।
सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाई लंकिनी रोका।
मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।
सीता निरखि परमपद लीन्हा।।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा।
अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा।
लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई।
जय जय जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।
कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लखन प्राण के दाता।
आतुर होय दुख हरहु निपाता।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर।
सुर समूह समरथ भटनागर।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।
बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।
महाराज प्रभु दास उबारो।।
ऊँकार हुंकार महाप्रभु धावो।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा।
ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के।
रामदूत धरु मारु जाय के।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा।
दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पांय परों कर ज़ोरि मनावौं।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनिकुमार बलवन्ता।
शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुल घालक।
राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।
अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की।
राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरिदास कहावौ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा।
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई।
पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।
ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल।
ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो।
सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै।
ताहि कहो फिर कौन उबारै।।
पाठ करै बजरंग बाण की।
हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै।
ताते भूत प्रेत सब कांपै।।
धूप देय अरु जपै हमेशा।
ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
दोहा:-
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।।
।। जय जय जय बजरंगबली ।।
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