काल भरवाष्टकम्
यह कालभैरवाष्टकम आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित नौ श्लोकों का समूह है. जिसमें स्वयं महाकाल के रौद्र रूप और काशी के द्वारपाल / क्षेत्रपाल कालभैरव के गुणों का वर्णन/स्तुति की गयी है. इस स्तुति में शंकराचार्य जी ने रौद्र भगवान काल भैरव के नौ मंत्रो की एक श्रंखला तैयार की जिसमें से आठ श्लोक काल भैरव की महिमा का वर्णन करते है, और नौवा श्लोक फलश्रुति है. इसीकारण नौ श्लोक होते हुए भी इसे कलभैरवाष्टक कहा जाता है..
आइए शुरू करते उनकी महिमा...
स्तोत्रम्
अनुवाद: देवराज इंद्र जिनके पवित्र चरणों की सदैव सेवा करते है, जिन्होंने चंद्रमा को अपने शिरोभूषण के रूप में धारण किया है, जिन्होंने सर्पो का यज्ञोपवीत अपने शरीर पर धारण किया है, नारद सहित बड़े बड़े योगीवृन्द जिनको वंदन करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जो करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्वी है,संसार रूपी समुद्र को तारने में जो सहाय्यक है, जिनका कंठ नीला है, जिनके तीन लोचन है, और जो सभी ईप्सित अपने भक्तों को प्रदान करते है, जो काल के भी काल (महाकाल) है, जिनके नयन कमल की तरह सुंदर है,
तथा त्रिशूल और रुद्राक्ष को जिन्होंने धारण किया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जिनकी कांति श्याम रूपी है, तथा जिन्होंने शूल, टंक, पाश, दंड आदि को जिन्होंने धारण किया है, जो आदिदेव, अविनाशी तथा आदिकारण है, जो महापराक्रमी है तथा अद्भुत तांडव नृत्य करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, चारों लोकोंमें स्थिर है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जो धर्म मार्ग के पालक तथा अधर्ममार्ग के नाशक है, जो कर्मपाश का नाश करने वाले तथा कल्याणप्रद दयाक है, जिन्होंने स्वर्णरूपी शेषनाग का पाश धारण किया है, जिसकारण सारा अंग मंडित होगया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जिन्होंने रत्नयुक्त पादुका (खड़ाऊ) धारण किये हैं, और जिनकी कांति अब सुशोभित है, जो नित्य निर्मल, अविनाशी, अद्वितीय है तथा सब के प्रिय देवता है, जो मृत्यु का अभियान दूर करने वाले हैं, तथा काल के भयानक दाँतोसे मुक्ति प्रदान करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जिनके अट्टहास से समुचित ब्रह्मांड विदीर्ण होता है, और जिनके दृष्टिपात से समुचित पापोंका समूह नष्ट होता है, तथा जिनका शासन कठोर है, जिन्होंने कपालमाला धारण की है और जो आठ प्रकार की सिद्धियों के प्रदाता है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: जो समस्त भूतसंघ के नायक है, तथा विशाल कीर्तिदायक है, जो काशीपुरी में रहनेवाले सभी भक्तों के पाप-पुण्यों का शोधन करते है तथा सर्वव्यापी है, जो नीतिमार्ग के वेत्ता है, पुरातन से भी पुरातन है, तथा समस्त संसार के स्वामी है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ.
अनुवाद: ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने हेतु, भक्तों के विचित्र पुण्य का वर्धन करनेवाले, शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप-ताप आदि का नाश करने हेतु, जो इस कालभैरवाष्टक का पाठ करते है, वो निश्चित ही कालभैरव के चरणों की प्राप्ति करते हैं.
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