।। अम्बिकास्तुतिः ।।
ॐ महातीर्थरैवतगिरिमण्डने जैनमार्गस्थिते विघ्नभीखण्डने!।
नेमिनाथाङ्घ्रिराजीवसेवापरे त्वं जयाम्बे जगञ्जन्तुरक्षाकरे !।।
ह्रीं महामन्त्ररूपे शिवे शङ्करे देवि वाचालसत्किङ्किणीनूपुरे!।
तारहारावलीराजितोरःस्थले कर्णताडङ्करुचिरम्यगण्डस्थले!।।
अम्बिके ह्राँ स्फुरद्वीजविद्ये स्वयं ह्रीं समागच्छ मे देहि दुःखक्षयम्।
ह्रां ह्रूँ तं द्रावय द्रावयोपद्रवान् ह्रीं द्रुहि क्षुद्रसर्पेभकण्ठीरवान्।।
क्लीँ प्रचण्डे प्रसीद प्रसीद क्षणं ब्लूँ सदा प्रसन्ने विधेहीक्षणम्।
सः सतां दत्तकल्याणमालोदये ह्स्क्ल्ह्रीं नमस्तेऽम्बिके! अङ्कस्थपुत्रद्वये।।
इत्थमद्भूतमाहात्म्यमन्त्रस्तुते क्रोँसमालीढषट्कोणयन्त्रस्थिते!।
ह्रींयुतेऽम्बे मरुन्मण्डलालङ्कृते देहि मे दर्शन ह्रीं त्रिरेखवृते!।।
नाशिताशेषमिथ्यादृशां दुर्मदे! शान्तिकीर्तिद्युतिस्वस्तिसिद्धिप्रदे।
दुष्टविद्याबलोच्छेदनप्रत्यले! नन्द नन्दाम्बिके! निश्चले! निर्मले!।।
देवि! कूष्माण्डि! दिव्यांशुके! भैरव! दुःसहे दुर्जये! तप्तहेमच्छवे!।
नाममन्त्रेण निर्नाशितोपद्रवे! पाहि मामंहिपीठस्थकण्ठीरवे!।।
देवदेवीगणैः सेविताङ्घ्रिद्वये जागरूकप्रभावैकलक्ष्मीमये!।
पालिताशेषजैनेन्द्रचैत्यालये! रक्ष मां रक्ष मां देवि! अम्बालये !।।
अत्र स्तुतौ गुप्तीकृतो मन्त्रस्त्वेवम्-
ॐ ह्रीं अम्बिके! ह्रां ह्रीं ह्रां ह्रीं क्लीँ ब्लूँ सः ह्स्क्ल्ह्रीं नमः।
।। इति श्रीअम्बिकास्तुतिः सम्पूर्णम् ।।
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